पुरातन काल में गेहूं व मक्की की पिसाई का जरिया रहे घराट धीरे-धीरे अपने अस्तित्व को खो रहे हैं। कहीं तो बिजली की चक्कियों ने घराटों को खत्म कर दिया तो कहीं कूहलों के सूख जाने या टूट जाने के कारण घराटों का अस्तित्व खत्म हो गया है। आधुनिकता की झूठी शान ने घराटों की अस्तित्व को लगभग लुप्त होने के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है। कोटला क्षेत्र में कभी 23 घराट चलते थे जिनमें से अभी मात्र तीन ही घराट चल रहे थे लेकिन इन पर भी कंपनियों की बुरी नजर लग गई और चंद पैसों की एवज में इन कंपनियों ने इन तीन घराटों का जीवन खत्म कर दिया। यह घराट आज एक कहानी बनकर रह गए हैं।
कई जगह उनके अवशेष, कूहलें, पत्थर की चक्कियां, लकड़ी की नालियां, गरड़ और घराट के पुरातन कलपुर्जे अपनी बदहाली की कहानी को बयां करते हुए नजर आते हैं। घराटों को चलाकर परिवारों का पालन-पोषण करने वाले परिवारों पर भी अब संकट के बादल मंडरा रहे हैं। पांच परिवारों पर उस समय मुश्किलों का पहाड़ गिर पड़ा जब कोटला से निर्माणाधीन फोरलेन परियोजना का कार्य कर रही भारत कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड कंपनी ने घराट को संचालित करने वाली कूहल ही बिना मालिकों की अनुमति तथा मुआवजा दिए बंद कर दी।
पांच परिवारों पर रोजी-रोटी का संकट
प्रभावित घराट मालिक प्रताप चंद, प्रवीण कुमार, पुरुषोत्तम, प्रेम चंद, इंद्र पाल ने बताया कि नौबत यहां तक आ गई है कि इन पांच परिवारों के 34 लोगों को दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं हो रही है। भूखे मरने की नौबत आ गई है और रोजगार के लिए दर-दर भटक रहे हैं। इन परिवारों ने सरकार, राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण और कंपनी से अनुरोध किया है कि घराट का नियमानुसार मूल्यांकन कर मुआवजा दिया जाए ताकि उन्हें परिवारों को पालन-पोषण करना आसान हो जाए।