मैहरन की धरोहरों की किसी ने नहीं की कद्र
स्वतंत्र हिमाचल (चुराग) राज ठाकुर
करसोग माहुंनाग मार्ग पर स्थित सपनोट बस पड़ाव से लगभग 100 मीटर पीछे “मैहरन मोड़” से एक संपर्क मार्ग मैहरन से जुड़ता है।मैहरन चारों तरफ लहलहाते हरे-भरे खेतों से घिरा एक लघु टेकड़ी पर स्थित सुंदर धरोहर गांव है।देव गूर ताराचंद जी का कहना है कि हजारों वर्ष पूर्व माहुंनाग जी के देवगण मशाणु देव जी ने दिल्ली से आकर एक शोषण रहित न्याय प्रिय समाज की मैहरन में स्थापना की।इस गांव में आज भी किसी का बुरा करने वाले को मशाणु देव अवश्य दण्ड देते हैं।
भूत-प्रेत बाधा से मुक्ति में भी मशाणु देव की उपासना बहुत फलदायी है।ऐसा माना जाता है कि किसी के घर में चोरी करने वाले की कुछ समय बाद दृष्टि चली जाती है या वह अकाल मृत्यु का ग्रास बन जाता है।किसी का बुरा करने या चाहने वाले को मशाणु देव स्वयं दण्डित करते हैं।
मैहरन में ऐसे घर बने हुए हैं जिनका निर्माण आज असंभव है। घरों की दीवारें पत्थरों और देवदार की पुष्ट लकड़ियों से बनी हुई हैं।कुछ घरों में तो लकड़ी ही लकड़ी लगी है।छोटे-छोटे पत्थरों से निर्मित काठ-कुणी शैली के भवनों के बरामदो की नक्कासी भी अलग-अलग डिजाइनों से की गई है।घरों की छतें अनगढ़ स्लैटों से ढकी हैं।आँगन मे बड़े-बड़े चौक बने है।जहां पर अन्न सुखाने व बर्फबारी में धूप सेंकने के के साथ विवाह आदि समारोह के दौरान अतिथियों को सम्मान पूर्वक बैठाया जाता है।
देव कोठी के पास बना चौक(विशाल चबूतरा)नाग देव ककनो जी को समर्पित है ।यहां शरद पूर्णिमा को (माड़ त्योहार की अगली रात्रि को)नागदेव ककनो जी का प्रैहता(रात्रि जागरण उत्सव)धूमधाम से मनाया जाता है।अधिकतर पुरानी शैली के भवन(चोड़े वाले घर) भी लोगों के निजी ही हैं पर आधुनिकता की चकाचौंध व पाश्चात्य रहन-सहन की होड़ के कारण लोग इन घरों में नहीं रहते हैं।मैहरन में हिम्मत सिंह मेहता,नारू प्रधान,बरिया राम के धरोहर भवन पर्यटकों, पुरातत्व प्रेमियों और आर्किटेक्चर विद्यार्थियों के आकर्षण के केन्द्र बन सकते है। लोग इन पुराने पुस्तैनी घरों को छोड़कर ईट-सीमेंट से बने पक्के रंग-रोगन वाले घरों में रह रहे हैं।इससे यह धरोहर भवन जर्जर होते जा रहे हैं।इसी प्रकार गांव के मध्य बनी तीन मंजिला नागदेव ककनो की कलात्मक कोठी भी जर्जर हो चुकी है।
मैहरन गांव में दानवीर कर्ण के गण मशाणु देव जी के नाम से प्रसिद्ध मंदिर है। जहां प्रदेश व देशभर से श्रद्धालु अपनी मन्नौतियो को मानने और अर्पित करने आते हैं।ऐसी भी मान्यता रही है कि मैहरन के मशाणु के बिना माहुंनाग जी का पूरा सामिप्य नहीं मिलता।करसोग क्षेत्र की सभी देव स्थलियों में मशाणु देव जी की रक्षक के रुप में बहुत महिमा है। ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा देने के नजरिए से इन ऐतिहासिक धरोहरों को पुन:संजोकर “होम स्टे”का रुप प्रदान कर मैहरन को पर्यटन स्थल के रुप में विकसित किया जा सकता है।
24 अप्रैल 2000 को पुरातत्व चेतना संघ मंडी द्वारा “पुरातत्व की अमर ज्योति स्वर्गीय श्री चन्द्रमणी कश्यप पुरातत्व स्मृति सम्मान” रुपी पहले राज्य स्तरीय पुरातत्व चेतना पुरस्कार से सम्मानित डाक्टर जगदीश शर्मा,व्यापार मंडल पांगणा के अध्यक्ष सुमित गुप्ता,युवा वैज्ञानिक विपुल शर्मा,पुराने बीजों व परंपराओं के संरक्षण में जागरुक कर रहे नेकराम शर्मा, लीना शर्मा का कहना है कि 1947 से लेकर अब तक कई सरकारें “आई और गई” लेकिन करसोग-पांगणा क्षेत्र के अनेक गांवो की कलात्मक धरोहरों सहित मैहरन की इन अमूल्य धरोहरों की किसी ने कद्र नहीं की।सुकेत संस्कृति साहित्य एवं जन कल्याण मंच पांगणा के अध्यक्ष डाक्टर हिमेन्द्र बाली’हिम” और डाक्टर जगदीश शर्मा का कहना है कि करसोग के पांगणा,माहुंनाग,करसोग और सराहन जिला परिषद वार्ड के अंतर्गत सांस्कृतिक दृष्टि से समृद्ध ग्रामीण इलाकों में पर्यटन क्षमता के दोहन के लिए पर्यटन क्षेत्रों का सर्वेक्षण कर पर्यटकों के विश्राम हेतु पुरानी इमारतों के रख-रखाव के लिए आगे आकर धरोहर भवनों के मालिकों को भी जागरुक करना होगा ताकि होम स्टे के रुप में इन पुरानी शैली के मकानों का संरक्षण भी समय रहते संभव हो सके।