घृत पर्व: मां के श्रृंगार को तैयार 20 क्विंटल मक्खन, देसी घी दान देने के लिए उमड़ रहे श्रद्धालु
सोशल डिस्टेंस मे रह कर भगवती जागरण की अनुमति दी
मकर सक्रांति की रात्रि भगवती जागरण के साथ मां की पिंडी पर होगा मक्खन से लेप
(कांगडा)मनोज कुमार
मकर सक्रांति के दिन घृत पर्व के आयोजन पर शक्तिपीठ मां श्री बज्रेश्वरी देवी मंदिर में अब तक 22 क्विंटल देसी घी श्रद्धालुओं द्वारा मंदिर में चढ़ाया गया है। वहीं पुजारी वर्ग द्वारा 20 क्विंटल देसी घी को मक्खन में बदल दिया गया है।मक्खन बनाने के लिए देसी घी दान देने वाले श्रद्धालुओं की संख्या भी दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है।
ठंड के बावजूद देसी घी को शीतल जल में एक सौ एक बार धोकर मक्खन बनाने के दौरान हाथ सुन्न से हो जाते हैं, पर मां के आशीर्वाद से यह काम जारी रहता है।पुजारियों का कहना है कि मा के आशीर्वाद से घृत पर्व के सभी कार्य स्वयं हो जाते हैं।
वरिष्ठ पुजारी पंडित राम प्रसाद शर्मा ने बताया कि माता की पिंडी पर चढ़ाए जाने वाला मक्खन बाद में श्रद्धालुओं व बाहर से आने जाने वाले लोगों को प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। ऐसा माना जाता है कि पिंडी पर चढ़ाया गया यह मक्खन रूपी घी कई बिमारियों के लिए लाभप्रद सिद्ध होता है और यह प्रक्रिया पिछले कई बर्षों से चली आ रही है।
मंदिर सहायक आयुक्त व उपमंडलाधिकारी कांगडा अभिषेक वर्मा ने बताया कि अब तक मंदिर में 22 क्विंटल देसी घी श्रद्धालुओं द्वारा मंदिर में चढ़ाया गया है। उन्होंने कहा कि अब तक पुजारी वर्ग द्वारा साढ़े 20 क्विंटल देसी घी को मक्खन में बदल दिया गया है।उन्होने बताया कि घृत पर्व के लिए मंदिर प्रशासन ने तैयारियां कर ली है। वहीं सोशल डिस्टेंस मे रह कर भगवती जागरण की अनुमति दी है।
पौराणिक कथा के अनुसार मां बज्रेश्वरी देवी जब जालंधर दैत्य से युद्ध करते हुए घायल हो गईं तब देवताओं ने उनके घावों पर मक्खन से लेप किया था। तभी से यह परंपरा चली आ रही है। मान्यता है कि सात दिन तक मक्खन माता की पिंडी पर चढ़ा रहता है। सातवें दिन पिंडी से मक्खन उतारने की प्रक्रिया शुरू होती है, फिर इन्हें श्रद्धालुओं में प्रसाद के तौर पर बांटा जाता है। यह भी मान्यता है कि इस प्रसाद को खाया नहीं अपितु शरीर पर लगाने से चरम जैसे रोग दूर होते हैं।