स्वतंत्र हिमाचल
(शिमला)सुनीता भारद्वाज
15वें वित्तयोग की रिपोर्ट में दिए गए सुझावों ने सरकार को सोचने पर मजबूर कर दिया है। टैक्स कलेक्शन के मामले में सरकार को पिछले सालों में नुकसान उठाना पड़ा है। हालांकि इस साल स्थिति कुछ हद तक सुधरी है, लेकिन फिर भी व्यवस्था करनी जरूरी है। एक ओर जहां सरकार के खजाने में अपने करों से होने वाली आय व सकल घरेलू उत्पाद के बीच का अंतर बढ़ रहा है, वहीं दूसरी ओर जीएसटी व वैट संग्रहण में कमी का असर भी अर्थव्यवस्था पर पड़ने लगा है।
आलम यह है कि आय के साधन बढ़ाने बारे सोचने के बजाय प्रदेश की सरकारें सालों से कर्ज पर ही निर्भर कर रही हैं। साल 2018-19 में प्रदेश का कर्ज सकल घरेलू उत्पाद के 35 फीसद से भी अधिक था। पंद्रहवें वित्तायोग की सिफारिश के बाद बेशक प्रदेश को 14वें वित्तायोग की सिफारिशों के मुकाबले छह हजार करोड़ सालाना केंद्रीय करों का हस्तांतरण अधिक होगा, बावजूद इसके आयोग ने प्रदेश की आर्थिक को लेकर अपनी रिपोर्ट में कर्जों के साथ-साथ जीएसटी व वैट के संग्रहण में कमी की ओर इशारा किया है। वित्तायोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रदेश में सकल घरेलू उत्पाद में जीएसटी व वैट का हिस्सा महज 2.94 फीसदी है। वर्ष 2016 -17 में जहां प्रदेश के सकल घरेलू उत्पाद में जीएसटी की हिस्सेदारी 3.5 फीसदी थी, वहीं 2017-18 में यह कम होकर 3.2 फीसदी ही रह गई। वित्तायोग की रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि प्रदेश को अपने करों से होने वाली आमदन में जीएसटी की हिस्सेदारी 59.8 फीसदी है। राष्ट्रीय औसत पर यह 70 फीसदी है।
शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में औसत से ज्यादा खर्च
वित्तायोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि शिक्षा व स्वास्थ्य के क्षेत्र में हिमाचल राष्ट्रीय औसत से अधिक खर्च कर रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य पर खर्च 2599 तथा शिक्षा पर 7901 रुपए है। इन दोनों क्षेत्रों में हिमाचल का प्रति व्यक्ति खर्च राष्ट्रीय औसत से अधिक है। रिपोर्ट में कहा गया है कि स्वास्थ्य व शिक्षा के अलावा स्वच्छता व पेयजल के मामले में भी हिमाचल राष्ट्रीय औसत से अधिक खर्च कर रहा है। जाहिर है कि प्रदेश में मानव विकास सूचकांकों पर आयोग ने संतोष जताया है।